राज्य की अदालतों में पेंडिंग केसों का अंबार तो है ही, अधिकांश कोर्ट परिसरोें में आने वालों के लिए न तो पेयजल की सुविधा है, न शौचालय की। कहीं हैं भी तो काम नहीं करते। आधे से अधिक अदालतों में न पार्किंग है, न कैंटीन, न वकीलों के चेंबर और न ही यािचकाकर्ताओं के लिए बैठने की जगह (लिटिगेंट शेड)। स्थिति ये है कि जोधपुर का कोर्ट चौराहा माने जाने वाले मिर्धा सर्किल के हर कोने पर बनी चाय की थड़ियों पर ही वकील, पुलिस, परिवादी व गवाह सभी मिल जाएंगे।
सीबीआई ने रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ जो छह केस दर्ज कर रखे हैं, उसके क्षेत्राधिकार वाली कोर्ट पावटा पोलो के एक मकान में चलती है। यहां प्रोसिक्यूटर, पुलिस, वकील, परिवादी और गवाह किसी के बैठने की जगह नहीं। अदालतों का फुटफॉल सालाना 4.50 करोड़ है। जहां हजारों लोग रोज आते हैं, उन 69 कोर्ट कैंपस(करीब 500 कोर्ट) में टायलेट तक नहीं है। 122 कोर्ट कैंपस में पीने का साफ पानी भी नहीं है।
किराये के मकान में कोर्ट, शौचालय पर ताले
जोधपुर महानगर मजिस्ट्रेट एनआई एक्ट की 1 से 7 तक की कोर्ट जोधपुर शहर की पॉश काॅलोनी के आलीशान मकान में चल रही है। बाहर से मकान जितना भव्य दिखता है, भीतर उतना ही परेशानियों भरा है। ऊपरी मंजिल में चल रही कोर्ट में जाने के लिए पतली गली की तंग सीढ़ी से जाना पड़ता है। सात कोर्ट होने के कारण यहां फुटफॉल भी ज्यादा है, लेकिन हैरानी की बात है कि पूरे मकान में लिटिगेंट, गवाह व वकीलों के लिए टायलेट नहीं हैं। पीछे की गली में दो टायलेट हैं, पर ताले लगे हैं।
जहां ‘सुविधाएं...वहां है बुरा हाल
जोधपुर के जिस भवन में सीबीआई और पीसीपीएनडीटी की अदालतें चलती हैं, ये वहां की तस्वीरें हैं। इन दोनों जगहों पर टॉयलेट और वॉटर कूलर दोनों हैं, मगर दोनों काम नहीं करते। इस कारण यहां आने वाले फरियादियों को परेशानी उठानी पड़ती है।
183 करोड़ में दूर हो जाएं अदालतों की आधी समस्याएं